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Showing posts from December, 2009

सतरंगी छटा

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बची हुई ऊन से इस कदर नमूना बन आएगा कल्पना से परे था |अपनी चुरू पोस्टिंग के दौरान बनाया वो भी केवल ट्रेन के चार घंटे के सफ़र में | सप्ताहांत में चार घंटे जाने के और चार घंटे आने के पर्याप्त थे बुनाई की तुष्टि के लिये | हर सलाई में १२ धागे चलते |कितनी भी सावधानी बरतती धागे उलझ ही जाते | इसलिए हर दो तीन सलाई के बाद ही सुलझा लेती | अलग-अलग थैली में रखने का नुस्खा भी कारगर नही हुआ| मुझे महसूस हुआ कि मैंने यह स्वेटर बनाते हुए बुना कम और सुलझाया ज्यादा है | पर आस्था ने पहना तो सतरंगी छटा धरती पर उतर आई |

नाम में क्या रखा है

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पता नहीं कब बच्चो के ना म लिखने कि धुन सवार हुई पर पहला नाम सृष्टि का लिखा स्वेटर पर वो सन था १९९१ | वो नाम वाला स्वेटर सबने पसंद तो किया ही आश्चर्य भी जताया | क्योंकि पारंपरिक स्वेटर बनाने वालों के लिये अजूबा था | फिर तो नाम लिखने का सिलसिला चला तो छवि , सृजन , हनी न जान कितने नाम लिख दिए पर उन सब का कोई फोटो नही है क्योंकि तब न कैमरा था मेरे पास और न ही लैपटॉप और सबसे बड़ी बात कि उनके एक्सपोज़र की भी कोई बात नही थी | जब आस्था की बारी आई तब तक बात फोटो तक पहुंची पर डिजिटल फिर भी नहीं था | यह तो स्कैन्ड फोटो है जी | "आस्था " नाम वाला यह स्वेटर भी बेहद पसंद किया गया | आस्था अब भी यह स्वेटर किसी को देना नही चाहती है | संजो कर रखना चाहती है |नाम में बहुत कुछ रखा है जी |

पेंटिंग वाला स्वेटर

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जब यह स्वेटर बनाया था तब एक बात थी मन में कि स्वेटर पर कोई नैचुरल सीन उकेर दूं | और दिमाग में पेड़ झोंपड़ी जैसी चीजें थी | पर जब बनाने लगी तो और भी पेंटिंग जैसी बातें याद आने लगी | मैंने सभी को ऊन से बनाने की कोशिश की | यह स्वेटर आश्चर्यजनक रहा | जब बुना गया तो हर सलाई में ११ ऊन के धागे चलते थे |अगला और पिछला हिस्सा सामान रूप से डिजाइनदार बुना गया | वर्धमान की जिस ऊन से बुना गया वो बेहद उम्दा और नर्म थी | ऐसा रंग इस किस्म में दुबारा नहीं आया | जब पहना गया तब बेहद सराहा गया और जब सरिता की प्रतियोगिता में भेजा गया तब न केवल प्रथम आया बल्कि मुखपृष्ठ पर प्रकाशित हुआ |

ट्यूनिक लुक

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यह गोल्डन येल्लो ऐ शेप फ्राक बनाने की संकल्पना थी | साथ ही मैं उसे ऐसा लुक देना चाहती थी कि वो ट्यूनिक का लुक भी दे | ट्यूनिक और पुलोवर अगर अलग हो तो ऊनी कपड़ा मोटा हो जाता है | इसलिए मैंने सामने नेक पर और स्लीव्ज़ में क्रीम रंग से लाइन बुन दी ताकि यह अलग लुक दे | करीब १५० फन्दों से शुरू करके कुछ दूरी पर एक एक फंदा घटाया है | बार्डर पर ट्विन बर्ड का फिगर बनाया है | कोई भी फिगर लिया जा सकता है |कंधे घटाने के साथ ही बीच से क्रीम रंग से वी शेप में बुना है | आपकी बिटिया इठला उठेगी यह यूनीक ड्रेस पहन कर जैसे मेरी बिटिया |

टक्स स्वेटर ने बदल दी मेरी दुनिया

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मैं कई वर्षों से अपने स्वेटरों के लिए पेंग्विन की तलाश में थी | एक दिन मैंने देखा मेरे लैपटॉप की स्क्रीन पर सृष्टि ने पेंग्विन ड़ाल दिया | मैंने पूछा यह यहाँ कैसे तो उसने बताया कि यह यह लीनक्स का लोगो है | मैंने लैपटॉप की स्क्रीन पर ग्राफ पेपर रखा तो स्क्रीन के पीछे से आती हुई लाईट में से पेंग्विन साफ़ चमक रहा था | मैंने सृष्टि को कहा की इस की ब्लैक पेन से आउट लाइन बना दे | उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये स्वेटर पर कैसे बनेगा | मैं नहीं सोच रही थी कि मेरी अगली योजना में ही यह शामिल है |जब मैंने ग्राफ के अनुसार स्वेटर बनाना शुरू किया तो सृष्टि को पता चला कि ये कैसे बन रहा है | पूरो पेंग्विन बन गया तो सृष्टि बोल उठी वाह ! ! ! फिर बोली इस पर अगर टी यूं एक्स भी लिख दिया जाए तो बस मजा ही आ जाए | क्योंकि टक्स लिनक्स के लोगो का नाम भी है |मैंने फिर ग्राफिंग की और टी यूं एक्स लिख दिया | जब स्पंदन ने स्वेटर पहना तो वो भी लीनक्स का लोगो लग रहा था | सृष्टि ने जब अपने इंजीनियरिंग कालेज के फ्रेंड्स को बताया तो सब की आश्चर्य भरी तारीफ़ ने मेरी कल्पना को नया आयाम दे दिया |

ताकि रहे बुनाई ज़िंदा

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मेरा ब्लॉग बनाने का ख़ास मकसद यह है की बुनाई की ऊष्मा कम न हो | आज के युग में जब टी.वी., मोबाईल, इन्टरनेट का वर्चस्व है ऐसे में बुनाई जैसे कार्य को दोयम दर्जे का माना जाता है | पर जब से मैंहै इन्टरनेट पर ऊन के विज्ञापन देखे और साईट्स पर डिजाइन देखे साथ ही बुनाई करने वालो का क्रेअटिविटी के है लगाव है तो मुझे लगा कि भारत में भी इस प्रथम दर्जे का बनाना है |
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बुनाई की दुनिया को इंटरनेट के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए जो खुशी है वो एक उद्देश्य को लेकर है | पिछले कई वर्षों से बुनाई करते हुए महसूस हो रहा था कि भारत में बुनाई का क्रेज़ ख़त्म सा हो रहा है | "आजकल कौन करता है जी बुनाई " " रेडीमेड का ज़माना है "जैसे जुमले अक्सर सुनने को मिलते |पर ना जाने ऐसा क्या था मेरे अन्दर जो बावजूद इन जुमलों के मेरा ऊन-सलाइयों से मेरा प्यार कम नहीं हुआ | चाहे उस जमाने से छुप कर बनाती रही जो रेडीमेड की दुहाई देते थे | एक दिन जब इंटरनेट कि दुनिया से रूबरू हुई तो मालूम चला कि विदेशों में इसका कितना क्रेज़ है | और मेरी कल्पनाओं को एक नया आयाम मिल गया |

फंदा दर फंदा सपने

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माँ ! जो बुने थे सपने तूने एक - एक फंदे से और सलाई दर सलाई बुनती चली गई मैं चाहती हूँ कि तेरे उन सपनों को मैं भी कर दूं फंदा दर फंदा साकार और फिर प्रेरणा भरी सलाइयों के बल पर रंग - बिरंगे सपनों को दे दूँ आकार आज तेरे जन्मदिन पर माँ यही है वादा और यही होगा तेरे लिये मेरा अनमोल उपहार २७ दिसम्बर