फंदा दर फंदा सपने


माँ ! जो बुने थे सपने तूने
एक-एक फंदे से
और सलाई दर सलाई
बुनती चली गई
मैं चाहती हूँ कि
तेरे उन सपनों को
मैं भी कर दूं
फंदा दर फंदा साकार
और फिर प्रेरणा भरी
सलाइयों के बल पर
रंग-बिरंगे सपनों को
दे दूँ आकार
आज तेरे जन्मदिन पर
माँ यही है वादा
और यही होगा तेरे लिये
मेरा अनमोल उपहार

२७ दिसम्बर

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