सोलो ट्रिप और ये लड़कियां भारत में पर्यटन कहाँ अकेले होता है, गर हुआ भी तो मेले मगरे, तीर्थ-मंदिर , धर्म के नाम पैदल चलकर जयकारे लगाते हुए चाची बुआ ताई मामी भाभी भैया जिज्जी या मोहल्ले भर के लोग - लुगाइयों के संग झुण्ड में यात्रा करते हुए आनंदित हुआ जाता है | अधिकाँश लोगों को तो मालूम भी नहीं कि इसे ही पर्यटन कहा जाता है | पर मैं इसे खालिस पर्यटन ही मानती हूँ | मोहल्ल्ले की तमाम औरतें जब अपनी अंटी से पइसा निकालते हुए मेले में खरीददारी करती हैं तो उनका रोमांच देखने लायक होता है | दूसरे दौर में सरकारी कर्मियों के घुमक्कड़ी अलाउंस के चलते एकल परिवार के साथ पर्यटन उभरा जिसमें माँ-पापा और दो बच्चों का साथ रहे | ज्यादा हुआ तो एक दोस्त का परिवार भी साथ ले लिया | पर संयुक्त परिवार के मुखिया और घर भर की औरतों ने मुँह पर हाथ रख कर खूब कोसा इस परम्परा को “ हा | देखो बेसर्मों को अकेले मुंह उठाया और चल दिए ..घूमने की आग लगी है ...” इस दौर में हम खूब घूमे | राजेंद्र जी का साथ हो और क्या चाहिए किसी को | दो बेटियाँ सृष्टि आस्था ...गोद में लेने की अवस्था से
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ज़िंदगी ज़िंदगी आती ही नहीं ढर्रे पर कुलाचें भरती हिरणी-सी थमती नहीं धरती पर नदियां आती ही नहीं किनारे पर मारती उछालें झरने-सी मिलती ही नहीं सागर पर बादल उतरते ही नहीं पहाड़ों पर तैरते रहते हैं हवा में बरसते ही नहीं धरती पर तारे टूटते ही नहीं धरती पर चमकते रहते हैं आसमान में कि कोई मांग ना ले इच्छा मन भर