सोलो ट्रिप और ये लड़कियां



भारत में पर्यटन कहाँ अकेले होता है, गर हुआ भी तो मेले मगरे, तीर्थ-मंदिर , धर्म के नाम पैदल चलकर जयकारे लगाते हुए चाची बुआ ताई मामी भाभी भैया जिज्जी या मोहल्ले भर के लोग-लुगाइयों के संग झुण्ड में यात्रा करते हुए आनंदित हुआ जाता है | अधिकाँश लोगों को तो मालूम भी नहीं कि इसे ही पर्यटन कहा जाता है | पर मैं इसे खालिस पर्यटन ही मानती हूँ | मोहल्ल्ले की तमाम औरतें जब अपनी अंटी से पइसा निकालते हुए मेले में खरीददारी करती हैं तो उनका रोमांच देखने लायक होता है |

दूसरे दौर में सरकारी कर्मियों के घुमक्कड़ी अलाउंस के चलते एकल परिवार के साथ पर्यटन उभरा जिसमें माँ-पापा और दो बच्चों का साथ रहे | ज्यादा हुआ तो एक दोस्त का परिवार भी साथ ले लिया | पर संयुक्त परिवार के मुखिया और घर भर की औरतों ने मुँह पर हाथ रख कर खूब कोसा इस परम्परा को “ हा | देखो बेसर्मों को अकेले मुंह उठाया और चल दिए ..घूमने की आग लगी है ...”

इस दौर में हम खूब घूमे | राजेंद्र जी का साथ हो और क्या चाहिए किसी को | दो बेटियाँ सृष्टि आस्था ...गोद में लेने की अवस्था से उनके कॉलेज जाने तक | उठाया अटैची..एक दो बैग...एक थर्मस..दो दूध वाली बोतलें...और एक अदद कैमरा और जी भर कर घूमे कश्मीर से कन्या कुमारी तक...राजस्थान से पश्चिम बंगाल तक भारत का कोई कोना नहीं छोड़ा   |



वो सदी का सन 2006 का अप्रैल माह था जब बेटियों के कॉलेज आने तक लेह लद्दाख का कार्यक्रम बना था | भारत का ये संभवतया उनके साथ अंतिम टूर था | सृष्टि बारहवीं में थी और आस्था आठवीं में | लेह के हर कोने को हम नाप लेना चाहते थे | डिस्किट ,पैनामिक, शान्ति स्तूप, सिन्धु नदी , महल , पेंग्विन झील, खरदुंगा टॉप और भी ना जाने क्या-क्या | पूरा 15 दिन का ट्रिप था | डिजिटल कैमरे का पहला अनुभव था यहाँ |

उस दिन हमें पेंग्विन झील का ट्रिप करना था | जब आप एकल परिवार के साथ टूर करते हैं तो आप वहाँ किसी का साथ ढूँढते हैं ताकि आपकी गाडी भर जाए और आपका ट्रिप भी इकोनोमिक रहे | हमें जो गाड़ी मिली उसमे पहले से ही एक युवक युवती बैठे थे | ड्राइवर ने हम चारों को भी सीटों पर सेट किया |

मैंने एक नजर उस युवक युवती पर डाली | नए दम्पति से ही नजर आए | आजकल लडकियों का जींस टी-शर्ट का पहनावा कुछ अनुमान भी तो नहीं लगाने देता | अभी हमारी बोलेरो कुछ किलोमीटर ही चली थी कि पहले कुछ आवाजें आई फिर “ शट-अप ...यू शट-अप ” की तेज आवाज़ ने मुझे पीछे मुडकर देखने को मजबूर कर दिया लेकिन उन दोनों के बीच बोलने की हिम्मत नहीं हुई | मैंने राजेंद्र की तरफ देखा और थोड़ा मुस्कुरा दी कि देखो तुम्हारी पत्नी ने कभी ऐसे शब्द नहीं बोले  |

पहले पॉइंट पर हम सब बोलेरो से उतरे तो मैंने देखा कि वो युवक और युवती अलग दिशा में चल रहे थे | मैंने गहराई पूर्वक ध्यान किया तो मुझे वो पति पत्नी नहीं लगे | मैंने युवती से साहस करके पूछा कि तुम साथ नहीं हो ? तो वो मुस्कुरा कर बोली  नहीं ! मैं सोलो ट्रिप पर हूँ ”

“और वो ?” मैंने उस युवक की तरफ इशारा किया तो बोली मुझे नहीं मालूम | मुझे माजरा समझा आ गया | मैंने उस युवक से भी सामान्य बात की तो वो अमृतसर से था और उसके पापा भारतीय जीवन बीमा निगम में ऑफिसर थे | मुझे अब समझ में आया कि हम इस बोलेरो में तीन अलग अलग यूनिट थे | हमारा परिवार, वो युवती और वो युवक |

उस युवती से मैं हैरानी से पूछ रही थी “ तुम अकेले आई हो ? ” उससे कतरा कतरा बात की  हालांकि उसके शट अप वाले रुख को देखकर ज्यादा नहीं खुल रहे थी फिर भी मालूम चला कि उसका नाम लावण्या था | उसने क़ानून की पढाई की थी और दिल्ली में किसी मल्टी नेशनल कंपनी में विधिक सलाहकार के रूप में नियुक्त हुई थी | वो चाहती थी कि नौकरी ज्वाइन करने से पहले एक बार लेह घूम आए |

मैं हैरत से उसे देख रही थी और उसके बारे में जानने की इच्छुक थी | उस दौर में जब हम अपने पति और बच्चों के साथ घूमने को भी अकेला माने जाते थे , हमारा समाज कहता था कि पूरा कुनबा साथ जाए ऐसे में उस लड़की का अकेला पर्यटन पर आना मुझे और मेरी बेटियों को हैरान कर रहा था | उसने बताया कि उसके मम्मी-पापा आई.ए.एस. ऑफिसर हैं और दोनों अलग अलग जगह रहते हैं | तीनों हर सप्ताह एक जगह लखनऊ में मिलते हैं जहां उसके पापा की पोस्टिंग है |

अब हम कुछ दोस्ताना हो चले थे | पेंग्विन लेक पर हमारे कैमरे के सेल ने जवाब दे दिया | पहले डिजिटल कैमरे के सेल के रख- रखाव का आइडिया ही  नहीं था | उस जगह कोई  दुकान भी नहीं थी | हमारे चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गयी कि इतने सुन्दर नज़ारे हम अपने कैमरे में कैद नहीं कर पाएंगे | उसने हमारी बात-चीत सुनी और अपने पर्स से सेल निकाल कर दिए | मैं मुस्कुरा दी और उसे पैसे देने चाहे तो वो मुस्कुरा दी-“ इट्स ओके आंटी ! ” और पैसे नहीं लिए | मुझे लगा ये “शट-अप” वाली लड़की बुरी तो नहीं है | वो तो अपने बचाव में कुछ भी कह सकती है | आखिर लड़की सोलो ट्रिप पर है | और वो युवक शर्मिदा शर्मिंदा सा हमारे इर्द-गिर्द घूमता रहा |

पूरे ट्रिप में मैं लावण्या को देखती रही | सोचती रही कि दबंग कितनी है आज की लड़कियां | ट्रिप ख़त्म होने पर मैंने उससे कहा “ लावण्य मैं हैरान हूँ तुम्हारे साहस पर ” तो वो बोली सृष्टि आस्था की तरफ इशारा करते हुए बोली  “ देखना आंटी ! जब ये बड़ी हो जायेंगी तब ये भी घूमेंगी ”

उसकी बात पर एक बार तो मेरा दिल कांप गया  |



आज सैनफ्रैन्सिसको से सृष्टि का फोन था वो अपनी वीक एंड एक्टिविटी के बारे में बता रही थी | वहां वो 5 घंटे अकेले कार चला कर शास्ता ट्रिनिटी  गयी थी जहां बोद्ध धर्म का मंदिर था | वो अक्सर ही अकेली घूमने जाती है  कभी साइकिल पर.... कभी कार पर.....तो कभी पैदल ही ट्रेकिंग पर | आज वो लावण्या के उस वक्तव्य को याद कर रही थी जो आज से 15 साल पहले उसने दिया था कि तुम भी अकेले घूमोगी | सृष्टि आज खुद कह रही है कि उसे उस समय तो उसकी बात सपना लगा रही थी और नन्ही सी सृष्टि सोचने लगी थी कि क्या वो ऐसा कर पाएगी | आज सृष्टि ने कुछ बातें उसकी याद करवाई और कुछ मुझे याद थी तो ये बात पूरी हुई लगती है | गहरी प्रकृति में विचरण कर रही है सृष्टि | जैसा नाम सृष्टि वैसा ही सृष्टि को करीब से देखने का कोई मौक़ा चूकना नहीं चाहती | अपना कैमरा और ट्राई-पौड के सहारे अपनी सिंगल फोटो भी खींच लेती है |


सृष्टि ने अपनी बात बताई तो मुझे भी वो लावण्या आज बहुत याद आई | काश हम उसका पता ले पाते तो आज उस तक अपना ये सन्देश दे पाते कि देखो लावण्या आज मेरी बेटियां भी तुम्हारी तरह सोलो ट्रिप कर रही हैं |

जियो लड़कियों जियो 

संगीता सेठी

   

      

      

           

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