Skip to main content
तुम कण क्यों हुए
तुम कण क्यों हुए
मैं तो बर्फ थी
पिघल ही गई
तुम तो पत्थर थे
रेत क्यों हुए
मैं तो नदी थी
उछल ही गई
तुम तो सागर थे
तूफान क्यों हुए
मैं तो हवा थी
गुजर ही गई
तुम तो पेड़ थे
उखड़ क्यों गए
मैं तो गुल थी
झर ही गई
तुम तो जड़ थे
हिल क्यों गए
मैं तो तारा थी
टूट ही गई
तुम तो ब्रह्मांड थे
कण क्यों हुए
Comments
Post a Comment