मेरे पर्स मे इतना कचरा क्यों है ?


उस दिन दवाई के दुकान पर  खड़ी थी | पर्स मे से डॉक्टर का पर्चा निकालने के लिए हाथ डाला | ये क्या....? पर्चा तो हाथ लगा नहीं पर एक जेब मे खाए हुई दवाई के मुड़े-तुड़े चमकीले रैपर थे | दूसरे जेब मे हाथ डाला तो टॉफी के थे | तीसरे जेब मे हाथ डाला तो हाथ पोंछा हुआ मुडा-तुड़ा टिश्यू पेपर था | हद तो तब हो गई जब एक थैली मे लिपटा केले का छिलका भी मेरे पर्स मे शोभायमान था | 
जैसे-तैसे डॉक्टर द्वारा लिखा पर्चा तो पर्स मे मिल गया पर मुझे सोचने को मजबूर होना पड़ा कि  आखिर मेरे पर्स मे इतना कचरा क्यों है ? स्वच्छता अभियान कोई आज की मुहिम नहीं | आज से 40 साल पहले भी मैंने अपने सहपाठियों के साथ मिलकर स्कूल के वार्षिकोत्सव में कव्वाली गाई थी भई कूड़ा मत फेंको...आहा... कि कचरा मत फेंको....ओहो....कि फेंको तो डिब्बे के अंदर...भई मस्त कलंदर....दमादम मस्त कलंदर..... आज 40 साल बाद भी गीत वही है कव्वाली वही है पर डिब्बा नदारद है | डिब्बा तब भी नहीं था...डिब्बा आज भी नहीं है | कहाँ है डिब्बा...? तो फिर कचरा किसमे डालें ? 
मेरे पर्स मे खाई गई दवाई के चमकीले रैपर छोटी जेब में मिल जाते हैं क्योंकि मैं जब भी दवाई खाती हूँ तो कभी मीटिंग मे कभी किसी अन्य सहकर्मी की सीट पर होती हूँ तो मेरे आस-पास कोई ऐसा पात्र नहीं होता जिसमें वो सूक्ष्म कचरा फेंका जा सके | स्वच्छ भारत का नागरिक होने के नाते मैं उसे अपने पर्स की छोटी जेब के हवाले कर देती हूँ | 
उस दिन रेलगाड़ी से यात्रा कर रही थे | हम सबने टॉफी खाई | रैपर हाथ में लिए इधर उधर झाँका तो कुछ नहीं दिखाई दिया | पति और बेटे ने रैपर मुझे पकड़ा दिया | मुझे गर्व की अनुभूति हुई कि  कम से कम कचरा रेलगाड़ी मे तो नहीं फैलाया | आखिर हम स्व्च्छ भारत एक नागरिक हैं | मैंने गर्व के साथ तीनों रैपर अपने पर्स के हवाले कर दिये | उस दिन एक विवाह समारोह मे थे | खाना खाने के बाद टिश्यू पेपर से हाथ पोंछते पोंछते बाहर आ गई थी | दूरदूर तक कचरा पात्र का नामो-निशान ना था | मैं तो भारत को स्वच्छ बनाने की मुहिम मे साथ हूँ | कचरा यूं ही सड़क पर कैसे फेंक दूँ....तो लो जी अपने पर्स के हवाले कर दिया |
अब हद है संगीता ! ये केले के छिलके भी पर्स मे ! कोई नहीं घर जाकर निकाल दूँगी पर्स से और अपने घर के ढक्कनदार

कचरा पात्र में डाल दूँगी | दरअसल ऑफिस मे केला खाया था अब खुले में  कचरा डालो तो थोड़ी देर मे ही बायोग्रेडिंग कचरे से बदबू आने लगती है और सब सहकर्मी चिल्लाने लगते है कि ये बदबू कहाँ से आ रही है | मैं स्वच्छ भारत कि स्वच्छ नागरिक इस छिलके को भी पर्स मे डाल लेती हूँ | रेलगाड़ियों के शौचालय पर लिखा है कि शौचालय साफ रखो | हम रखना भी चाहते है पर कैसे ? ना पानी होता है ना टिश्यू पेपर कि सीट साफ करके उठें | ना कचरा पात्र है ना साबुन | 
सूखा कचरा गीला कचरा और रिसाइकिल कचरे का बराबर निस्तारण हो | शहर के हर स्थान पर ढक्कनदार कचरा पत्र हों तभी स्वच्छता अभियान सफल होंगे | अभी तो घरों में भी कचरा पात्र सही तरीके से नहीं रखे जा रहे तो सड़कों पर कैसे रखरखाव होगा | 
केवल स्वच्छ भारत अभियान चलाने से बात नहीं बनेगी | कचरे का निस्तारण का बराबर प्रबंध करना होगा वरना मुझ जैसे स्वच्छ नागरिक स्वच्छता अभियान कि मुहिम मे कचरे से अपना पर्स भरते रहेंगे | 

संगीता सेठी

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