मुझे
याद आता है
मै
कर्ज़दार हूँ तेरी
हर
बार तेरे आने पर
उठती
हूँ नींद से
सजती
हूँ संवरती हूँ
सोचती
हूँ आज
तेरा
कर्ज़ उतार ही आऊँ
सज
संवर कर गुनगुनाती
खुद
को तैयार करती हूँ
तेरे
कोड़े खाने के लिए
ना
जाने कितने चाबुक से
उतरेगा
कर्ज़ तेरा
काँपते
हुए हाथ
लरज़ते
हुए होंठ
चिपकी हुई ज़ुबान
सहमा
हुआ दिल
बन्द
आँखें नम-सी
फूल-से
स्पर्श से
खुल जाती हैं
मेरे
काँपते हाथ
प्रार्थना
के लिए
जुड़
जाते हैं
उंगली
के पोरों का स्पर्श
मेरे
लरज़ते होठों पर
ठण्डक
दे जाता है
तेरी
खामोशपन
चिपकी
हुई जबान को
मत्रोच्चारण
दे जाता है
सहमा
हुआ दिल
तेरे कदमों में
झुक
जाता है
बन्द
आँखे खुलती हैं
गर्म
धारा के साथ
सामने
धवल वस्त्रों में
तू
दूत नज़र आता है
सुना
है तेरी देहरी पर
कर्ज़
माफ होते हैं
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