मैं नही जानती थी कि
प्रेम क्या होता है
बस हर समय
एक शिशु में
चाह्त में
डूबती उतराती रहती थी
ये जानते हुए भी
कि शिशु का आना तो
ईशवर का आना होता है
धरती
पर
और ईशवर कब आते है
मुझ पापिनी के
लिए धरती पर
हाँ ! वो समय था
जब मैने चाहा
था ईश्वर
से
एक अबोध शिशु सा चेहरा
एक चमत्कार की क्षीण सी
रेखा
मेरी आँखों में कौंधी थी
मैं भागी थी उस रेखा के
पीछे
भागने और हाँफने की बीच हुए
हाद्सों में
तुम बीच रास्तों में गिरे
मेरे मांस के लोथड़े उठाते चलते
रहे
मैने पीछे मुड़ कर देखा
तुम्हारे हाथ भी लहू से
लाल हो गए थे
चमत्कार की वो क्षीण रेखा
गहराती
गई
ईश्वर को आना ही
पड़ा
मुझ पापिनी के पेट से
तुम जो थे ईश्वर के दूत-से
मेरे इर्द –गिर्द
मुझे तुम्हारे
चेहरे में वो शिशु
नज़र आया
था
कितने कर्ज़ हो गए
हैं मुझ पर तुम्हारे
एक-एक कर उतार
दूँगी वो सब कर्ज़
पर माँ होने का
कर्ज़ कैसे चुका पाऊँगी
ता-उम्र रहूँगी
कर्ज़दार तुम्हारी
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