माँ बन गई है आकाश

माँ
कभी बन्द कली
कभी खिला फूल
कभी बन जाती है महकता बाग
सराबोर रहे खुश्बू से बचपन

माँ
कभी पगडण्डी
कभी सड़क
कभी बन जाती है रेत का टीला
धंस जाए पाँव और सधा रहे यौवन

माँ
कभी खुशी उलीचती नदी
कभी दुख समोती सागर
कभी बन जाती है झरना स्नेह का
भीगता रहे जीवन छमा-छम

माँ
कभी पेड़
कभी फल
कभी बनकर धरती ओढ लेती दूब
चुभे ना एक भी कंकर इस जीवन

माँ
अब नहीं है जहाँ में
फिर भी वो कभी चाँद
कभी तारे
ओढनी-सा सज कर
बन गई है आकाश
ताकि आती रहे हमें नींद सुखद

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