बैठक बन्द रहती है मिट्टी के डर से




वो बैठक का नज़ारा
ज़िसमें बाबा के दोस्त
जमा करते थे घण्टॉं
और मै भी
उसका हिस्सा हुआ करती थी
फुदकती हुई
कभी इस कुर्सी त्तो कभी उस मूढे
कभी प्लेट में पड़े
चिवड़े पर झपटती
तो कभी बाबा के गिलास से
आम का पाना पीती

कुछ बड़ी हुई तो सपने ईज़ाद हुए
माँ से कहने लगी
सोफे लाओ ना अपनी बैठक में
और गुलदान भी
जैसे मेरी सहेली के घर पर हैं
ताकि हमारी बैठक भी महक उठे
फूलों से
माँ-बाबा ने मुस्कुरा कर
टाल दिया

सपने कुछ अंकुरित हुए
ना सही सोफा ना सही गुलदान
सरकण्डी के मूढों को ही सजाने लगी
माँ की पुरानी साड़ी से
अपने पुराने सूटों से
बनाने लगी कुशन और
मैं खुद काढने लगी कशीदे
और सजने लगी बैठक

अब मेहमान आते तो मैं
ट्रे में करीने से ले जाती गिलास
आम के पाने से भरे हुए
एक प्लेट मे बिस्किट सजे हुए
ओम अंकल मेरी
प्रशंसा करते नफाज़त की
रामप्यारी आँटी
मेरा कशीदा निहारती
मैं सकुचा जाती
उनके जैसे सोफे तो ना थे
हमारी बैठक में

सुन्दर बैठक के सपने
बुनते और पनपते रहे
उन सपनों के जंजाल को लिए
मैं ससुराल की चौखट पर आ गई
इंटीरियर वास्तु फेंगशुई जैसी कलाओं
की बारीकियाँ सीखती रही
सजाती रही अपनी बैठक
कलात्मक सोफे
काँच के मेज
महंगे गुलदान
कढाईदार कुशन
वास्तु के अनुसार तस्वीरें
फेंगशुई के तमाम खिलौने
मेरी बैठक को महल का
रूप देते रहे
और मैं पोंछती रही
तमाम चीजों को
बड़ी नज़ाकत से
पर नहीं आता है अब
कोई मेहमान
समय की कमी के कारण
कोई आता भी है जल्दी में
तो बैठा दिया जाता है
दालान में...अहाते में
या खड़े-खड़े ही
विदा कर दिया जाता है
महल जैसी बैठक में
बैठने के
नियम तय किए हैं
हर कोई तो
नही बैठाया जाता
उन गद्देदार सोफों पर
इसलिए
ना सजते हैं काजू प्लेटों में
ना बादाम शेक परोस पाती हूँ
महंगी क्रॉकरी
शो-केस में सजी रहती है
और बैठक बन्द रहती है
मिट्टी के डर से

Comments