धरती के दरबार में हमने क्या क्या देखा मुड़-मुड के इस ज़िंदगी को हमने फिर से देखा ज़हर से भी कड़वी है , क्या कहना ये दुनिया तन मेरा पड़ गया नीला सारा ,जैसे गरम सलाईयां कोई तो आया शिवजी बन के, अपने गल पर रखा धरती के दरबार में,हमने क्या क्या देखा मुड़-मुड के इस ज़िंदगी को हमने फिर से देखा ये दुनिया तलवार दोधारी, जख्म करे जी भर के इधर चलूँ तो लहू रिसे,उधर चलूँ तो कत्ल दिलों के कोई तो आया ईश्वर बन के, इन ज़खमों पर मरहम रखा धरती के दरबार में ,हमने क्या क्या देखा मुड़-मुड के इस ज़िंदगी को हमने फिर से देखा ये दुनिया है आग का शोला, मैं भी बन गयी अंगारा ठंड पिलाते जली हथेली ,रूह मेरी शोले भरी पिटारा कोई तो आया रब्ब बन के, मारी फूंके छींटा रखा धरती के दरबार में,हमने क्या क्या देखा मुड़-मुड के इस ज़िंदगी को हमने फिर से देखा
Posts
Showing posts from September, 2012