जर्मन लेखक की स्टोरी संग कहानी कहन

स्टोरी टेलिंग सेशन
यूं तो स्टोरी टेलिंग सेशन करते हुए मुझे दो दशक से ज्यादा हो गए हैं | हर बार मेरा स्टोरी टेलिंग सेशन पिछले वाले से कुछ ज्यादा अच्छा  होता है | अपने बच्चों को कहानी सुनाने से ये सिलसिला शुरू हुआ और स्कूल के छात्रों और मोहल्ले के बच्चों, विश्व पुस्तक मेला के बच्चों, बुकरू फेस्टिवल और जूनियर राइटर बग चिल्ड्रेन फेस्टिवल और फिर अनेक उत्सवों में स्टोरी टेलिंग हुआ | धीरे धीरे मेरा यूट्यूब चैनल  भी बन गया | मुझे खिलौनों के साथ कहानी सुनाना अच्छा लगने लगा | अमेरिका से लाया पांडा मेरा दोस्त बन गया | कोरोना काल में यह पांडा मुझसे बिछड़ गया | यह  बीकानेर रह गया और मैं मुंबई चली गई तो मुंबई में मुझे नई दोस्त फ्लोरा मिली | 
इस बार सृष्टि अमेरिका से आई तो मुझे अपनी फ्रीलोक इवेंट की कहानी सुनाने लगी | उसने मुझे जर्मनी लेखक की लिखी हुई बच्चों की किताब दिखाई जिसे उसने बोस्टन के इवेंट से खरीदा था | वो उस लेखक से मिली और उसके हस्ताक्षर उस किताब पर लिए थे | सृष्टि ने किताब अपनी हवाई यात्रा में पूरी पढ़ ली थी | वर्तमान परिप्रेक्ष्य की यह कहानी कम्प्यूटर के कारनामों पर आधारित थी | जर्मनी लेखक मत्थिअस किर्सच्नेर द्वारा लिखी कहानी “ऐडा और ज़न्गेमन्न” को संक्षिप्त सुनाकर बोली आप भी तो ऐसी कहानी सुनाते हो | 
वो बोली-“ क्यों ना हम इसे बच्चों के बीच जाकर सुनाएं |”
सृष्टि अपना अनस्ट्रक्चर स्टूडियो के नाम से एन.जी.ओ. चलाती है जो कनाडा से रजिस्टर्ड है |
मैं हैरत में थी | मैं खुद से ही प्रश्न करने लगी -“ क्या उसे मेरा तरीका पसंद आयेगा ?” “मैं तो हिन्दी कहानी सुनाती हूँ” 
वो गले में बाहें डालकर बोली मैंने आपका यूट्यूब चैनल देखा है माँ  !
मैं आश्चर्य से भर गयी | वो स्थानीय एन.जी.ओ. के साथ संयोजन करना चाहती थी | मैंने ढूँढने में मदद की और हमें रोबिन हुड एन.जी.ओ. मिल गया | उसकी संयोजिका माधवी जोशी से बात हुई | हमने रविवार का दिन तय किया और निकल पड़े अपनी पांडा के साथ | साथ में लिए कुछ बिस्किट के पैकेट्स,कुरकुरे और टॉफीज़ भी | 

हम रोबिनहुड एन जी ओ की माधवी जोशे के साथ ऐसे बच्चों को कहानी सुनाने जा रहे थे जो अछे घर में नहीं रह रहे थे और मुश्किल से स्कूल जा पा रहे थे |
वहां जाकर बच्चों को देखकर लगा बच्चों को कम्प्यूटर के बारे में कैसे बता पायेंगे |    
जर्मन लेखक की मत्थिअस किर्सच्नेर द्वारा लिखी कहानी “ऐडा और ज़न्गेमन्न” में एक एडा है जो बहुत गरीब है जिसकी बचत एक कुकीज़ जार में ही समा जाती है | जबकि ज़न्गेमन्न बहुत अमीर बच्चा है जिसके घर में बहुत सारे कमरे, स्विमिंग पूल और सीढियां हैं | ज़न्गेमन्न कम्प्यूटर की दुनिया का बच्चा है और उस पर काम करना चाहता है | वो अपने स्केट बोर्ड को कम्प्यूटर से ठीक करना चाता है , आइसक्रीम की मशीन बनाना चाहता है | अपने कमरे को साफ करना चाहता है | 
उधर एडा कबाड़ से जुगाड़ कर रही थी क्योंकि वो बहुत गरीब थी | 
जब मैंने उन झोंपड़ियों के बाहर बच्चों का समूह देखा तो मैं निराशा हुई कि इन्हें मैं उस अमीर ज़न्गेमन्न की कहानी कैसे सुनाऊंगी क्योंकि मैं उसकी अमीरी का बखान करके उनका दिल नहीं दुखाना चाहती थी | दूसरा बिंदु यह था कि बच्चे कम्प्यूटर के बारे में जानते भी नहीं होंगे | 
फिर भी मैंने कहानी सुनाने की ठानी | मैंने उन्हीं बच्चों के परिप्रेक्ष्य में कहानी सुनानी शुरू की और ऐडा का ज़िक्र किया | उन बच्चों ने कम्प्यूटर कभी नहीं देखा था | मैंने जर्मन लेखक की कहानी की एडा का घर का वर्णन उनकी झोंपड़ी के जैसा ही किया | मैंने बताया कि एडा अपनी माँ को चूल्हे पर रोटी बनाते हुए देखकर दुखी होती थी | अपने पापा को साइकिल पर जाते हुए देख कर दुखी थी |बीच बीच में स्थानीय बच्चों के नाम भी लिए कि जैसे रंजन के पापा, राजकुमार की मम्मी |
 पर उन्होंने कम्प्यूटर तो देखा ही नहीं था | तो उनको मोहल्ले के नज़दीक एक दूकान के माध्यम से कम्प्यूटर  दिखाया जहाँ एडा केले बेचने जाती थी | और कहानी ऐसे आगे बढ़ाई “बच्चों ! कम्प्यूटर में एक हार्ड वेयर होता है और एक सॉफ्ट वेयर | जैसे तुम्हारा शरीर हार्ड वेयर है और तुम्हारी आत्मा सॉफ्टवेयर | जब तुम सोचते हो और आत्मा को कहते हो कि अपने दोनों हाथ आगे बढाओ और ताली बजाओ तो ये कम्प्यूटर पर कमांड लिखने जैसा होता है | 
एडा चाहती है कि उसके पापा को पैडल ना चलाना पड़े और साइकिल चल पड़े | उसकी माँ को चूल्हा ना जलाना पड़े और रोटियाँ बन जाएं | उसका घर साफ़ हो जाए | बात आगे  बढ़ी तो बच्चे उत्सुक थे कि कम्प्यूटर और भी क्या कर सकता है | एडा सपने में पहुँचती है | 
क्या आइसक्रीम भी बन सकती है कम्प्यूटर पर कोडिंग लिखने से | जब बच्चों को आइसक्रीम बनाने की बात कही तो बच्चे चहक पड़े | एक बच्चा तो बोला –“ हाँ ! मैंने 40 रूपये वाली आइसक्रीम खाई है ” 
आइसक्रीम की कोडिंग की बात सुनकर बच्चों के चेहरे पर एक चमक थी |
अनस्ट्रक्चर स्टूडियो की सी. ई. ओ. सृष्टि प्रसन्न थी कि हम उन बच्चों को कम्प्यूटर के बारे में बता पाए जो इसके नाम से भी परिचित नहीं थे | और मैं तो प्रसन्न थी ही साथ ही आनंदित भी की मेरी कहानी कहने का कौशल काम आया |

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