ज़िंदगी












ज़िंदगी आती ही नहीं

ढर्रे पर

कुलाचें भरती

हिरणी-सी

थमती नहीं

धरती पर

 

नदियां आती ही नहीं

किनारे पर

मारती उछालें झरने-सी

मिलती ही नहीं

सागर पर

 

बादल उतरते ही नहीं

पहाड़ों पर

तैरते रहते हैं

हवा में

बरसते ही नहीं

धरती पर

 

तारे टूटते ही नहीं

धरती पर

चमकते रहते हैं

आसमान में


कि कोई मांग ना ले

इच्छा मन भर  

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