आत्मीय सम्बन्धों का खात्मा है मीटू
माँ के ज़माने की बातें हैं और हमारे ज़माने में वो संवादों से तो कभी इशारों से बताया करती थी कि मर्द और औरत का रिश्ता रुई और आग का रिश्ता होता है | मैं हमेशा ही माँ से उलझ जाया करती थी | भला ये भी कोई रिश्ता है |
मैं अम्मा से बहस कर लेती “ बाबा से रिश्ता होता है भाई का भी रिश्ता होता है, बेटे का भी,जवाई का भी और दोस्त का भी रिश्ता होता है जो मर्द हैं ”
भले ही हमारी भारतीय संस्कृति में पर-पुरुष के लिए मित्र का स्थान नहीं रहा पर अब हर किसी पराए मर्द को भाई कहने का ज़माना गया | यूं पर-पुरुष से रिश्तों की कोई ख़ास पहल नहीं कर पाई पर बेटियों के ज़माने तक आते आते इन रिश्तो की परिभाषा और भी बदल गई | कच्ची जवानी की उम्र से ही लड़के लड़कियों का साथसाथ पढना, देर रात पढाई के बहाने पढना, साथ-साथ कॉलेज टूर पर जाना मेरे अन्दर छिपा माँ का मन प्रश्नों से हलकान हुआ जाता था | मैं आखोँ ही आखों मे बेटियों से प्रश्न करती और बेटियों ने आँखों ही आँखों  में  मेरे प्रश्नों की प्यास बुझा दी थी | हैरानी तो तब हुई जब छोटी बेटी को पुणे मे केवल लडकियों वाले होस्टल में छोड़ा वहां भी लडकों को एक लाउंज तक काम के सिलसिले में मिलने कि इजाजत थी क्योंकि कॉलेज में तो दोनों की शिक्षा साथ हो रही है ना और ग्रुप प्रोजेक्ट में लड़के-लड़की का कोई भेद नहीं था | एक ग्रुप प्रोजेक्ट में लड़का भी है और लड़की भी है और चर्चा के सिलसिले में वो लड़कियों से मिलेगा भी | यानि कॉलेज प्रशासन, परिवार, समाज सबकी स्वीकृति है साथ बैठने की और देर रात मिलने की भी | तो मैं किस मानसिकता में जी रही हूँ | अपनी अम्मा से बहस में उलझने वाली मैं बेटियों द्वरा उपदेश दिए जाने लगी हूँ “ संकीर्ण मानसिकता छोड़ो मम्मी !”
“ हां ! छोड़ दी संकीर्ण मानसिकता, ऑफिस में पुरुषों संग काम किया , देर शाम तक तो कभी मार्च में देर रात तक भी , कभी पुरुष सहयोगी और मैं अकेली |  कभी साहित्यिक यात्राएं की लेखकों संग जहां अकेली मैं और बाकी सब पुरुष | आत्मविश्वास खूब बढ़ा | बेटियों की बात सही लगी | पुरुष मित्रों के संग भी आत्मीय रिश्ते होते हैं | लम्बी दूरी के रिश्ते बनते हैं ”
अपने ही शहर में एक सिनेमा हाल में जब पति के साथ सिनेमा देखने गई तो उस सिनेमा हाल के नियमानुसार पुरुष और महिला को अलग अलग खड़ा कर दिया गया | मैं पति को देखकर मुस्कुराती हुई हाथ हिलाकर महिलाओं के झुण्ड में जा खडी हुई |
आज मीटू अभियान के शुरुआती दौर में पुरुष मित्रों के कटने का अहसास होने लगा है और औरतों में भी चिंता का आलम है | स्तब्ध हो गया मित्रता का दायरा | भला ये भी कोई अभियान है | कौन, कब, कहाँ, किस पर कितना पुराना दावा ठोक दे मालूम नहीं | प्रेम के झीने परदे में पड़े हुए रिश्ते ईर्ष्या-द्वेष की आग में ही ना जल जाएं | सहज मुस्कानों के बीच चलते संवाद कठोर चेहरे पर माथे की शिकन ना बन जाए | आत्मीय रिश्तों के पुलिंदे ऐसे अभियान की हवा में ही ना उड़ जाएं | माँ के ज़माने की बातें फिर से ना उग आयें कि मर्द और औरत का रिश्ता रुई और आग का रिश्ता होता है |
जो भी है विकास के इस दौर में पुरुष और औरत सम्बन्धो की सीढी जिसे बनाने, समझने और स्वीकृत होने में बरसों लग गए उन आत्मीय रिश्तों का खात्मा है ये मीटू अभियान |

संगीता सेठी 



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