tum tab aaye
तुम तब आए !
ज़िन्दगी
की
राह
पर
बुहारते
हुए
कांटे
जब हो गई खुरदरी
हथेलिया
मेरी
मेहन्दी
लगाने
तुम तब आए !
मंज़िलें
पाने
के
लिए
कांटों भरी
राह
पर
चलते हुए
चलते हुए
जब रिसने लगी
बिवाईया
मेरी
पायल पहनाने
तुम तब आए!
अन्धेरों
भरी
राह
में
खोजते हुए
अपनों को
जब धुँधला
गई
आँखें मेरी
काजल लगाने
तुम तब आए !
जीवन के नीड़
में
विरह की आग में
मिलन की आस में
जब झुलस गई
रूह मेरी
मरहम लगाने
तुम तब आए !
ब्रह्माण्ड
की
यात्रा
पूरी हुई
मोक्ष पाने की
जुगत
में
विलीन हुई
पंचतत्वों
में
देह मेरी
फूल खिलाने
तुम तब आए !
तुम क्यों आए ?
तुम क्यों आए ?
तब तुम आए
ReplyDeleteतुम क्यों आए क्यों आए।
इन दो लाइनें में ही जिन्दगी का आईना दिख गया है और दिख भी रहा है ।
शुक्रिया !
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