मैं डरती नहीं हूँ
मालूम है भौकेंगे
काटेंगे
और मैं हट जाउंगी पीछे
मैं डरती नहीं हूँ सर्पों से
मालूम हैं फूफकारेंगे
डसेंगे
और मैं बदल लूंगी रास्ते अपने

मैं डरती नहीं हूँ हैवानों से
मालूम है झपटेंगे
करेंगे वार
और मैं भी खींच लूंगी
अस्त्र अपने
मैं तो डरती हूँ बस
इंसानो से
मालूम ही नहीं भौकेंगे
या काटेंगे
फूफकारेंगे
या डसेंगे
झपटेंगे
या करेंगे वार
और मैं नहीं हट पाऊँगी
पीछे
नहीं बदल पाउंगी रास्ते
अपने
नहीं करा पाउंगी पलटवार
अस्त्र से
हाँ मैं डरती हूँ इंसानों से ।
इंसान ही इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है क्योंकि एक इंसान अपने आप को सूपर साबित करने के लिए दूसरे की टाँग खिंचाई शुरू कर देते है ।
ReplyDeleteशुक्रिया ! आपकी प्रतिक्रिया का !
DeleteVery nice poem
ReplyDeleteशुक्रिया ! विक्रम जी !
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