मैं मेंहंदी


मैं इक निकी जी पत्ती 

खोरे केडे बूते दी 
उड़ के पई सी 
धरती ते 

सुक के तीला 
हो जाणा सी 
ख़ाक हो जाणा सी 
मिट्टी नाल 

रब्ब ने आके चुकया 
पीसया वटयाँ  नाल 
दर्द दी हूक उठी भावें 

पर गीली होके 
खिली सी 
मैं 
रब्ब ने ही खोरे हत्थां ते 
रख दित्ता 
फुल  ते बूट्यां नाल 
लाल निकल आई 
हाँ ! मैं मैहन्दी जे सी 
खोरे उसे बूटे दी 

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